Thursday, 15 March 2012

Indian Railway and me


भारतीय रेल  :- पटरियों पर धड़कते अरमानों का सफ़र ! छुटपन में कम्पार्टमेंट की आबाद ज़िंदगी लुभाती थी , तो प्लेटफ़ॉर्म पर जोश से भरी खानाबदोशी का आलम ! कुल्हड़ की चाय का सुरूर तो अब भी ताज़गी से भर देता है !
                                      गुज़रते वक्त ने ज़िंदगी के इर्द गिर्द बहुत कुछ बदल कर रख दिया ! अब हवाई यात्रा या निजी वाहन के बाद ट्रेन तीसरा विकल्प है ; पर स्टेशन पर अपनी ट्रेन का इंतज़ार अब भी वैचित्र्य के संसार में ले जाता है :- क्या पता मेरे coupe में अक्समात ही वह भी हमसफ़र निकले और ज़िंदगी साथ ना गुज़ार पाने की कशिश को दो मुक़ामों के बीच के सफ़र में हम साथ साथ जी कर बहुत कुछ compensate कर सकें ! या क्या पता कोई मुसाफ़िर ही ऐसा मिले कि ,साथ का दायरा पटरियों से परे भी किसी चुहलबाजी करते कैफ़े या  थिएटर तक बढ़ जाए !
                यह advertisement नहीं है ---but - I love भारतीय रेल
                                                                                     # RAJESH PANDEY

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