अवघड-सच्चाई
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कभी किसी चौखट पर आशियाने की ख़्वाहिश पनपी ; पर वहाँ सामाजिक प्रपंचों के ढेरों ताले जड़े मिले , और मैंने क़दम खींच लिए .....रुकना मुनासिब ना था ......
सफ़र में थक कर , किसी छाँह के सुकून को रुका -- पर फुसफुसाहटों और मुँह दबी फब्तियों ने बेचैन कर दिया ! चाह कर भी रुक ना सका .......मै फिर बढ़ चला .......तन्हा ........अपनी राह !!
फिर ना जाने क्यूँ , एक छत ने महफ़ूज़ होने का भ्रम दिया ! ना जाने क्यूँ फिर आसरे की चाह जागी ! पर वहां भी शंकाओं और दोहरे मापदंडों की भुरभुरी नींव ने ईमारत ही ढहाने की ठान ली ! कोई ठिकाना ना हुआ !
पर सफ़र रुका नहीं .......अब भी बदस्तूर जारी है ....एक मुस्कुराहट और उन यादों की मीठी टीस के साथ , जिन्हें सिर्फ ख़्वाबों के सहारे जिया , सिर्फ ख़्वाबों में सहेजा , समेटा , और जो सिर्फ ख़्वाब ही रह गये !
अब टिमटिमाते तारों से जड़े नीले आकाश ने , सर पर एक अनंत विस्तार खींच रखा है -----ना तो इसे नींव की दरकार है , और ना ही इसके छीजने, दरकने का भय ! और मैं बेफ़िक्र चल पड़ा हूँ -----भूत , भविष्य से परे ------अवघड सच की पगडंडियाँ ।
राजेश पाण्डेय
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कभी किसी चौखट पर आशियाने की ख़्वाहिश पनपी ; पर वहाँ सामाजिक प्रपंचों के ढेरों ताले जड़े मिले , और मैंने क़दम खींच लिए .....रुकना मुनासिब ना था ......
सफ़र में थक कर , किसी छाँह के सुकून को रुका -- पर फुसफुसाहटों और मुँह दबी फब्तियों ने बेचैन कर दिया ! चाह कर भी रुक ना सका .......मै फिर बढ़ चला .......तन्हा ........अपनी राह !!
फिर ना जाने क्यूँ , एक छत ने महफ़ूज़ होने का भ्रम दिया ! ना जाने क्यूँ फिर आसरे की चाह जागी ! पर वहां भी शंकाओं और दोहरे मापदंडों की भुरभुरी नींव ने ईमारत ही ढहाने की ठान ली ! कोई ठिकाना ना हुआ !
पर सफ़र रुका नहीं .......अब भी बदस्तूर जारी है ....एक मुस्कुराहट और उन यादों की मीठी टीस के साथ , जिन्हें सिर्फ ख़्वाबों के सहारे जिया , सिर्फ ख़्वाबों में सहेजा , समेटा , और जो सिर्फ ख़्वाब ही रह गये !
अब टिमटिमाते तारों से जड़े नीले आकाश ने , सर पर एक अनंत विस्तार खींच रखा है -----ना तो इसे नींव की दरकार है , और ना ही इसके छीजने, दरकने का भय ! और मैं बेफ़िक्र चल पड़ा हूँ -----भूत , भविष्य से परे ------अवघड सच की पगडंडियाँ ।
राजेश पाण्डेय
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