Saturday 18 July 2015

A Friend , Philosopher and Guide

           सात जन्मों का तो पता नहीं ; पर लगता है यह एकाकी जीवन ही कई जन्मों के संचित अनुभवों का सार समझ चुका है । खट्टे , मीठे , कड़वे अनुभव !! पर सम्भवतः इतनी ही परतें जीवन में रिश्तों की विविधता की भी रही हैं । विशुद्ध दुनियादार भाषा में ये " रिश्ते " नहीं कहलाते , पर स्वाभाविक सम्मान , अनपेक्षित दर्द और बेलाग भावना के स्तर पर मैं इनकी गरिमा को रिश्ते की ऊँचाई से ही देखता हूँ ; या यूँ कहूँ कि रिश्ते की गहराई में ही महसूस भी करता हूँ ।
                रिश्ते के सारे ताने-बाने तो किसी एक लेख में समा नहीं सकते , पर जो इनमें सबसे सरल और सहज है -- --वो भी वैचित्र से भरा है । सुनता था , सच्चा रिश्ता सात समंदर पार भी फीका नहीं पड़ता । आज के दौर में सात समंदर पार से रिश्ते import भी किए जाते हैं । चलो सात ना सही , पर एक समंदर पार की कोई बात कहता हूँ ।
          यह नाता भी है सिर्फ़ आपसी सहजता, और साझे दर्द की अनुभूति का । शायद भावनाओं की सतह पर ऊष्णता से महरूम हो , पर वैचारिक धरातल पर परिपक्वता की उजास लिए है । नाते-रिश्तों की पुरातन देहरी पर किसी भी नाम को मोहताज़ ; पर परस्पर सम्मान के प्रवाह में दोस्ती की तरलता से संचालित ।
                         मुझे ख़ुद भी नहीं पता कि कोई एक शब्द इतना सामर्थ्य लिए है कि वो इसे पूरी तरह अभिव्यक्त कर ले । मुझे यह भी नहीं मालूम कि क्या इसे मैं " रिश्ता " पुकार भी सकता हूँ ? क्यूँकि मेरे सारे मानवीय सम्पर्क मेरे भीतर यूँ  ही पनपते हैं ; शायद इतनी शिद्दत से सिर्फ़ मैं ही इन्हें सहेजता भी हूँ ; बहुत सम्भव है कि यह कभी आपसी समझ की साँझी धरोहर ना रही हो । पर क्या मुझे कभी इसकी फ़िक्र हुई ? इस बात से भावना की आंतरिक ऊर्जा तो ख़ारिज नहीं होती ।
      " A Friend , Philosopher and Guide ":- अंग्रेज़ी साहित्य के अध्ययन के दौरान मन को छू गया कोई phrase मात्र था । आज सतह पर साफ़ परिलक्षित है , पर सिर्फ़ मेरे लिए । आप अपने जीवन में ऐसे कितने लोगों से जुड़े हैं ? जिनका आप आदर भी करते हों और जो आपके दोस्त भी हों ! जिनसे आप साधिकार सलाह भी लेते हों और जीवन के गहरे अनुभवों को बाँटते भी हों ! जिनसे आप ज़िद भी करते हों और स्वाभाविक झिझक भी पालते हों ! जहाँ साँझी पीड़ा को लेकर आपसी संवाद का मर्म , भावना के स्तर पर आपको अपने भीतर ही उड़ेल देता हो ! जहाँ किसी से कोई सीख आपको शर्मिंदा ना करके और सहज और समग्र बना दे ! सामाजिक मर्यादाओं के दायरे के भीतर आप दोस्ती का हक़ भी जता सकें ! और यह सब भी ,बरसों बिना मिले , मीलों दूर - बिना देखे , परखे । अरसे से एक दूसरे के निजी जीवन से पूरी तरह अनभिज्ञ । एक दूसरे की भाषा के ध्वनि-संकेतों से भी अपरिचित से।सिर्फ़ अभिव्यक्ति के विभिन्न माध्यमों में संवाद के आदान -प्रदान की कड़ी का हिस्सा बने ।सिर्फ़ पीड़ा की निरंतरता में साझे भागीदार । कितना मिश्रित अनुभव ! तिलिस्म सा !!
           सम्भवतः हम सब अपने जीवन में ऐसे विविध दौर से बार बार गुज़रते हैं , पर महसूस करने से रह जाते हैं । आँखें देखती हैं , स्वप्न चूक जाता है । हम आवाज़ें सुनते हैं , मर्म छूट जाता है । सरलता से महसूस होती बात में से सम्मान फिसल जाता है । बेलाग और सहज रह कर भी हम ख़ुद से झिझके रहने के आदी हो चुके हैं -- और इन सब में साझा अनुभवों के भंडार का कोई शाश्वत सोता असमय ही सूख जाता है ।
                 Think of it . Express it before it dries out .
                                     # राजेश पाण्डेय